कोविड की वजह से मरने वालों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। एक तरफ इलाज और दूसरी तरफ आक्सीजन की कमी से लाखों लोगों की जान जा चुकी है। लेकिन ज्यादातर लोग कोरोना से ठीक होने के बाद हार्ड अटैक का शिकार हो रहे है।


एक एक स्टडी में पता चला है कि जो लोग गंभीर रूप से कोरोना से संक्रमित हुए थे। उनमें से करीबन 50 प्रतिशत हॉस्पिटलाइज्ड मरीजों का रिकवरी के महीने भर बाद हार्ट डैमेज हुआ है। इस वजह से रिकवरी के बाद भी मरीज का हार्ट रेट को चेक करना जरूरी है।


बताया जा रहा है कि कोविड-19 का इंफेक्शन बॉडी में इंफ्लेमेशन को ट्रिगर करता है, जिससे दिल की मांसपेशियां कमजोर पड़ने लगती हैं। इससे धड़कन की गति प्रभावित होती है और ब्लड क्लॉटिंग की समस्या असामान्य रूप से उत्पन्न होने लगती है।


कोरोना वायरस सीधे हमारे रिसेप्टर सेल्स पर हमला कर सकता है और मायोकार्डियम टिशू के भीतर जाकर उसे नुकसान पहुंचा सकता है। जो कि हार्ट फेलियर का कारण बन सकता है। किसी इंसान के दिल की मांसपेशियां जब खून को उतनी कुशलता के साथ पम्प नहीं कर पाती जितने की उसे जरूरत है।


तब संकुचित धमनियां और हाई ब्लड प्रेशर दिल को पर्याप्त पम्पिंग के लिए कमजोर बना देते हैं। ये एक क्रॉनिक समस्या है जिसका समय पर इलाज न होने से कंडीशन बिगड़ सकती है। इसलिए जिन लोगों को संक्रमित होने से पहले कोई मामूली हार्ट डिसीज थी।


या फिर कोविड-19 के बाद छाती में दर्द की शिकायत है तो वे इसकी इमेजिंग जरूर करवाएं। किसी भी इंसान का हार्ट फेल होने पर उसे पहले सांस की तकलीफ हो सकती है। भूख नहीं लगती है और बार-बार पेशाब आता है। इसके साथ ही शरीर में कमजोरी और थकावट बढ़ने लगती है। पंजे, एड़ी या पैर सूज जाते हैं। हार्ट बीट तेज और अनियमित हो सकती हैं।


लगातार खांसी और फ्लूड रिटेंशन से वजन बढ़ सकता है। अगर किसी इंसान में ये सभी लक्षण दिख रहे हैं तो उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं। इन चीजों का इलाज घर में करने की कोशिश ना करें। शुरुआती स्टेज पर इलाज मिलने पर हार्ट अटैक कंट्रोल किया जा सकता है।


जरूरत पड़ने पर लेफ्ट वेंट्रीकुलर असिस्ट डिवाइस प्रोस्यूजर या थैरेपी के साथ एक हार्ट ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। LVAD लेफ्ट वेंट्रिकुलर को मदद करता है जो कि हार्ट का सबसे प्रमुख पम्पिंग चैंबर है।